बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व | बुद्ध के जीवन से जुड़े लोग

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बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व :- दोस्तों आज के इस लेख मे हम जानेंगे कि बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व या बुद्ध के जीवन से जुड़े लोग के बारे में। बुद्ध के जीवन मे बहुत से लोग आए, लेकिन उन्मे से कुछ महत्वपूर्ण लोगों के बारे मे जानेंगे। तो चलिए जानते है बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व | बुद्ध के जीवन से जुड़े लोग-

बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व
बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व

 बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व निम्नलिखित है

आनंद :- कपिलवस्तु का रहने वाला, बुद्ध का चचेरा भाई, देवदत्त का सगा भाई। बुद्ध के प्रिय शिष्यों में से एक, बुद्ध के जीवन में सबसे निकट यही है। बुद्ध सबसे अधिक उपदेश इसी को दिए थे सबसे अधिक बार इसी को संबोधित किए थे इसी को “बुद्ध की छाया” कहा जाता है। आनंद के ही कहने पर बुद्ध ने पहली बार वैशाली में पहली महिला के रूप में प्रजापति गौतमी को संघ में प्रवेश दिलाया। बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद राजगीर में इन्होंने (गौतमी) सूत पिटक का संकलन किए । 

नोट :- महा प्रजापति गौतमी को संघ में शामिल करने के बाद बुद्ध ने भविष्यवाणी किया है कि जो बौद्ध संघ 1000 साल तक अस्तित्व में रहता वह 500 साल तक भी नहीं रह पाएगा।

देवदत्त :- आनंद का बड़ा भाई एवं बुद्ध का सबसे बड़ा घोर विरोधी देवदत्त अनिरुद्ध के साथ अनुप्रिया (कपिलवस्तु) नामक स्थान पर आनंद के कहने पर बुद्ध ने उपाली और देवदत्त को अपना शिष्य बनाया। बुद्ध के जीवन काल से ही संघ का प्रमुख बनना चाहता था जिसके लिए वह बुद्ध से भी अनुरोध किया लेकिन बुद्ध ने उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

अतः देवदत्त पशुओं को अपने साथ लेकर गया में एक संघ बना लिया। राजगीर में देवदत्त अजातशत्रु के साथ मिलकर बुद्ध को मरवाने का प्रयास किया, निलगिरी हाथी से कुचलवाकर लेकिन हाथी बुद्ध के पास जाते ही वह बुद्ध के चरणों में झुक गया एवं नतमस्तक हो गया। बौद्ध भिक्षुओं ने अपने प्रयास से देवदत्त के पक्ष में गए भिक्षुओं को पुनः बुद्ध के पक्ष में ले आए देवदत्त के द्वारा जो संघ स्थापित किया गया था। उसका प्रभाव मुख्य रूप से अवध और बंगाल क्षेत्र में रहा और यह गुप्त काल तक अस्तित्व में रहा। 

उपाली :- यह शाक्यगन (कपिलवस्तु) का रहने वाला नाई वर्ण का संतान यानी नाकिन पुत्र था यह बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक था बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उन्होंने विनय पिटक का संकलल किया। 

सुनीति :- यह वर्णसंकर, भंगी वर्ण का था, गांव में प्रवेश से इसे पूर्ण मनाही थी लेकिन यह बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक था बुद्ध हमेशा इसके बारे में कहते हैं कि “बौद्ध धर्म का सिद्धांत मुझसे नहीं सुनीती से सुन लीजिए”

सुभद्र :- बुद्ध ने अपने जीवन का अंतिम उपदेश इसी को दिए थे लेकिन यह बुद्ध की मृत्यु के बाद सबसे अधिक खुश हुए थे और कहने लगे कि अच्छा हुआ कि हमारे सास्था (गुरु) चले गए अब हम लोग स्वतंत्र हैं, प्रथम बौद्ध संगति का सबसे बड़ा कारण सुभद्र ही रहा। 

मातंग :- यह शुद्र वर्ण का था एवं बुद्ध के प्रिय शिष्य में से एक था। 

सेनापति सिंह :- यह लीच्छावि  का सेनापति था एवं जैन धर्म का अनुयाई था। महात्मा बुद्ध के संपर्क में आने के बाद यह बौद्ध भिक्षु बन गए। 

यम :-  यह बनारस के अनाज व्यापारी का पुत्र था एवं बुद्ध के प्रिय शिष्य में से एक था। 

अनाथपिण्डक (शुदत) :- छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व का सबसे बड़ा अमीर व्यापारी था एवं यह श्रावस्ती का रहने वाला था। बुद्ध के संपर्क में आने के बाद यह सब कुछ त्याग दिया एवं भिक्षु बन गया। इसी ने श्रावस्ती में जीत कुमार से जमीन खरीदकर विहार बनवाकर जेतवन बिहार बुद्ध को दान में दिए थे। 

तिस्स :- यह श्रावस्ती का रहने वाला था कुस्ट रोग से पीड़ित व्यक्ति था, कुष्ठ रोग होने के कारण इसके पत्नी और पुत्र ने इसे घर से निकाल दिया था। बुद्ध ने इसे गले लगाया एवं अपने संग में इसे जगह दिया बुद्ध इसके बारे में कहते हैं कि यह मेरे तीसरे गुरु हैं। 

जीवक :-  इसे बौद्ध संघ का “आभूषण” कहा जाता था यह बाल रोग विशेषज्ञ थे, इसलिए इन्हें कौमारवृत के नाम से भी जाना जाता है, यह भारत के प्रथम ऐतिहासिक चिकित्सक थे एवं इन्होंने तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त किया था। इन्होंने बिंबिसार चंद प्रद्योत और महात्मा बुद्ध का भी इलाज किया था एवं यह बौद्ध संघ तथा बिंबिसार के राज्यपाल थे इसी के अनुरोध पर बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए तीन विचार वस्त्र का नियम लागू किए थे। 

अजातशत्रु :-  शुरू में यह जैन धर्म के अनुयाई थे लेकिन बाद में यह बौद्ध धर्म को स्वीकार किया, यह देवदत्त के काफी निकट थे। बाद में देवदत्त के प्रभाव से मुक्त होकर बुद्ध की शरण में आ गए बुद्ध इनके बारे में कहते हैं कि बुरे लोगों के प्रभाव में आकर मगध का राजा उसका मित्र बन गया। बौद्ध साहित्य दीर्घ निकाय में यह वर्णन मिलता है कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी अस्तित्व कलश को लेकर आठ अलग-अलग लोगों ने जो दावा किया था उसमें अजातशत्रु का भी दावा था। 

प्रसेनजीत :- यह कौशल नरेश थे जो उम्र में बुद्ध के समन्वय (उम्र के बराबर) थे, बौद्ध साहित्य मझिम निकाय में वर्णन मिलता है कि प्रसेनजीत द्वारा बुद्ध की पहली लकड़ी (चंदन की लकड़ी) निर्मित प्रतिमा बनवाया गया था जिसमें विशेष भूमिका प्रसेनजीत की पत्नी मल्लिका का था और इस प्रतिमा को जेतवन बिहार में स्थापित किया गया था, बुद्ध ने अपने जीवन काल में निर्देश दिए थे कि उनकी प्रतिमा पूजी नहीं जाएगी प्रसेनजीत ने अपनी दासी पत्नी “वासव खतीय” एवं पुत्र “विडूव” के कारण राजधानी को छोड़ दिया था तब उसने प्रसेनजीत से कहा था कि किसी पुत्र की पहचान समाज में उसके पिता द्वारा होती है ना की मां के द्वारा। 

बिंबिसार :-  यह मगध वंश का राजा, बुद्ध के शिष्य एवं मित्र थे इन्होंने बुद्ध को अपने हाथों से वेणुवन बिहार (राजगीर) में भोजन कराया था। 

नंद :-  यह महा प्रजापति गौतमी का पुत्र था, इसने अपने राज्य अभिषेक के दिन ही बौद्ध धर्म में दीक्षा ले लिया था और अपने राज्य को त्याग दिया था। 

शुद्धोधन :-  यह बुद्ध के पिता थे यह बौद्ध धर्म में दीक्षा लेते समय बुद्ध के सामने रोते हुए कहे “पुत्र का प्रेम पिता के मांस, मज्जा और अस्तित्व में बसा हुआ रहता है” इसी घटना के बाद बुद्ध ने संघ में प्रवेश के लिए यह नियम बना दिया कि बिना माता-पिता के अनुमति के किसी को भी संघ में शामिल नहीं किया जाएगा। 

राहुल :- यह बुद्ध के उम्र के 70 वे वर्ष में बौद्ध धर्म में शामिल हुए थे। 

छंदक (चन्ना) :-  यह बुद्ध के प्रधान सारथी थे, यह भी बौद्ध संघ में शामिल हो गए थे। 

उंगली मार डाकू :-  यह श्रावस्ती का खूंखार डाकू था, जो बुद्ध को मारने के प्रयास में बुद्ध के पास गया था लेकिन बुद्ध के बातों से प्रभावित होकर बुद्ध के चरणों में नतमस्तक हो गया एवं बौद्ध संघ में शामिल हो गया। 

महाकश्यप :-  यह बुद्ध का शिष्य एवं प्रथम बौद्ध संगति का अध्यक्ष था। 

माह कच्छयान :- यह भी बौद्ध संघ धर्म को अपनाया एवं बौद्ध संघ में शामिल हो गया था, इसी ने अवंती नरेश चंद प्रद्योत को बौद्ध धर्म में शामिल किया था। 

सारीपुत्र और महमोगलायन :-  यह दोनों नालंदा के रहने वाले थे एवं महा विद्वान व्यक्ति थे, यह ब्राह्मण वर्ण के थे यह दोनों उम्र में बुद्ध से बड़े थे,  प्रचार प्रसार के दौरान जब बुद्ध राजगीर में थे तब यह दोनों बुद्ध के तर्क वितर्क के लिए आए थे तर्क वितर्क के बाद दोनों बुद्ध के शिष्य बन गए इन दोनों की मृत्यु बुद्ध से पहले हुई थी बुद्ध जो सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त कर चुके थे एवं जीवन, मृत्यु, दुख, संसार इन सभी चीजों से भलीभांति परिचित थे फिर भी इन दोनों शिष्यों की मृत्यु पर बुद्ध फूट फुट कर रोने लगे थे। 

उद्रकराम पुत्र या रूद्रकराम पुत्र :-  यह बुद्ध के दूसरे गुरु थे

नोट:-  बुद्ध ने अपना तीसरा गुरु “तीस्स” को माना था। 

पाँच भिक्षु :- यह वही पांच भिक्षु है जिनके साथ शुरू में बुद्ध रहे थे एवं ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने प्रथम उपदेश इन्हीं को दिए थे इन 5 भिक्षुओं के नाम निम्नलिखित है – 

क्रमभिक्षु
1अश्वजीत
2वाप्त
3कौंडिण्य
4भर्तियां
5महाना

ये भी पढे :- बौद्ध धर्म का इतिहास | History of Buddhism

बुद्ध के जीवन से जुड़े व्यक्तित्व FAQs

Q. बौद्ध धर्म की 3 मुख्य मान्यताएं क्या हैं?

बौद्ध दर्शन 3 मूल सिद्धांतों पर आधारित है, 1. अनीश्वरवाद, 2. अनात्मवाद, 3. क्षणिकवाद।

Q. गौतम बुद्ध की मृत्यु क्या खाने से हुई थी?

गौतम बुद्ध की मृत्यु माँस कहा लेने से हुए थी।

Q. बौद्ध धर्म का मूल आधार क्या है?

बौद्ध धर्म का मूल आधार अहिंसा है।

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